शोर
जुलाई 31st, 2011
(छपरा में ध्वनि प्रदुषण बहुत बढ़ चला है । यह कविता उसी के ऊपर एक प्रतिक्रिया है ।)
सड़क पे बहुत शोर है यहाँ,
नयी बनी पक्की राहों पे,
चिल्लाकर बढ़ने का,
बहुत जोर है यहाँ ।
कुशाषण के दिन ख़त्म हुए,
बेसब्री के बादल अभी तो शुरू हुए है छटना,
और तुमने लाइन तोड़ शुरू कर दिया बढ़ना,
अरे भाई, और भी बहुत लोग है यहाँ ।
सफ़र शान्ति से कट जाए,
जिंदगी का सफ़र तो बस कट ही रहा है,
भीतर तक भेदती तुम्हारी गाड़ियों की आवाज़े,
सुकून है कहाँ?
नितीश कुमार
बहुत अच्छा, धन्यवाद
j p university india ka sabse ghatia university है भी tak isaka part 3rd ka result nahi निकला अगस्त भी khatam हो गया लग रहा है की २०१३ में ही निकले गा थैंक्स आपका
good……
Bahut achha laga